Thursday, June 4, 2015

बिहार चुनाव

इस बार गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है पर बिहार के गलियारों में एक दूसरी ही गर्माहट पाँव पसार रही है खिंचा कसी, मान मनौवल, ताना तानी, तू तू मैं मैं आदि आने वाले दिनों में ये अपने चरम सीमा तक चली जायेगी | बात है चुनाव को अब चन्द महीने रह गए और कुर्सी के रंगीन खेल के लिए बिहार जगविख्यात है अतः भिन्न भिन्न रंगों का समागम शुरू हो गया है और भी बहुत से रंगों की उम्मीद लगायी जा सकती है | रंग तोह कई उड़ते हैं पर जो रंग असरदार और फलदायक होता है वो है साम्प्रदायिकता और जातिवाद का इन्ही की बदौलत नेता पिचकारी भरते हैं जनता को बुरी तरह सराभोर करते हैं और विजय का छाप अपने नाम कर जाते हैं | यूँ तोह जमाना बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है फिर भी बिहार के लोगों का इन सबसे ऊपर उठ पाना नामुमकिन सा लगता है | एक तोह नेता अपने फायदे के लिए ऐसा होने नहीं देना चाहते और दूजी जनता सही शिक्षा के अभाव में इन सवमें अपने अहम् को देख इनसे जुड़े रहना चाहती है |
कुछ तो भारतीय इतिहास से सिखने की जरुरत है जहाँ बब्राह्मणों और छतरियों ने अपनी प्रभुता बचाये रखने के लिए और अपने बर्चस्व की रक्षा के लिए वैश्य और शूद्रों को अपने से निचे रखा और एक दिवार कायम किया जो आजतक चला आ रहा है | विभाजन का रूप पहले काम के अनुसार था अर्थात पूजा पाठ और शिक्षा से वाले ब्राह्मण, राज्य पर शाशन करने वाले तथा युद्ध करने वाले छत्रिय , व्यापार करने वाले वैश्य और मजदूर वर्ग को शुद्र के रूप में विभाजित किया गया था जिसे क्रमशः वंशगत आकार दे दिया गया |
एक और जहाँ मानव ने आज विज्ञानं पर विजय पायी है आये दिन नित्य नवीन अविष्कार हो रहे हैं वहीँ दूसरी और ये सामाजिक कुरुतियां और भेदभाव समाज के सशक्तिकरण और देश के विकाश का बाधक सिद्ध हो रही है | शायद यही कारन है की बिहार अभी तक पिछड़ा हुआ है और जबतक ये भेदभाव दूर नहीं होते इस जमीन पर बिकाश की परिकल्पना करना मूर्खता ही होगी|

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