Thursday, August 11, 2016

क्या हम आज़ाद हैं ?

"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा ll" - बाल गंगाधर तिलक 

स्वराज को यदि विच्छेदित किया जाय तो सहज ही यह अपने अर्थ बता देती है, इसी स्वराज की लालसा में कईयों ने अपने जान न्योछाबर किये, सालों साल संघर्ष चलता रहा, वह समय था जब हम अंग्रोजों के अधीन उनकी प्रताड़ना सह रहे थे ! अपने ही देश में जंजीरों से बंधे खुद की स्वतंत्रता खो चुके थे ! कुछ लोगों ने तोह इसे अपनी नियति समझ खुद को बेबस और लाचार बना लिया था और पराधीनता के घोंट पिए जा रहे थे वहीँ कुछ ऐसे भी साहसी वीर निकले जिन्हें पराधीन रहना गंवारा न था और वे भारत को स्वन्त्र करने को निकल पड़े ! उन्होंने देशवासियों को आह्वान किया और देखते ही देखते उनके उद्घोषों ने मानो सोये हुए भारतवासियों में जैसे एक स्फूर्ति जगा दी, जनसैलाब उमड़ पड़ा, मानो क्रान्ति का सृजन हो गया हो ! अब जब करोड़ों भारतवासी एकजुट हो गए तोह किसका मजाल था जो इस एकता के सामने न झुके ! अंग्रेजों को आखिर झुकना ही पड़ा और हमें आज़ादी मिल ही गयी !आह! ग़म के काले साये से निकलती ख़ुशी रुपी लालिमा का मंजर भी क्या खूब होगा !
१५ अगस्त १९४७ के आज़ादी के जश्न मात्र से ही गाँव में रहने वाला गरीब किसान, मजदूर, शोषित वर्ग और कई ऐसे लोग जिनका एक-एक दिन गुजारा करना बद से बदत्तर था उनके दिलों में एक आश जगी होगी अपने आने वाले पीढ़ी के बेहतर भविष्य की ! अब देश के अपने संविधान गठन की प्रक्रिया जोरों पर थी, संविधान सभा में बात गरीबों के हित की भी होती और उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्हें आरकक्षण रुपी औज़ार भी दिया गया ! आरक्षण ने कुछ हद तक अपना काम तोह किया पर यह समाज के अति गरीब और अति पिछड़े वर्ग के लोगों तक अभी भी नहीं पहुँच पाया है! 
आज स्वतंत्रता मिलने के ७० साल बाद भी गरीब किसानों मजदूरों की  स्थिति में कोई सक्रीय बदलाब देखने को नहीं मिला है! आज भी भारत में गरीबी अपने पाँव पसारे हुए है , करोड़ों लोग दाने दाने के मोहताज़ हैं, लाखों लोग भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं, हजारों किसान पेट काटकर सोता है, सैकड़ों किसान सूद के बोझ आत्महत्या करने पर विवश है! गाँव की शिक्षा की स्थिति और जर्जर हो चली है ! गरीब बच्चों के पास शिक्षा का कोई अच्छा साधन नहीं है! वही खस्ता हाल सरकारी अस्पतालों का है जो गरीबों का एकमात्र सहारा है!  

अब याद करिये उस आज़ादी के मंज़र को! जो स्वयं में कितने आशा लेकर आयी थी पर वर्तमान की स्थिति उनकी आशा पर निराशारूपी जल फेंकने का काम कर रही है! ऐसी आज़ादी ?! ऐसा स्वराज जहाँ स्व का विकाश होना एक सपना सा है! गरीबी अमीरी की दूरी सूर्य और पृथ्वी की दूरी सी हो गयी है ! आज भी गरीबों की सुखी रोटी आह लेकर जिंदगी को कोषते हुए पेट में जाती है ! आज भी गरीबों के बच्चों के उत्थान के लिए कोई कदम नहीं लिए जा रहे ! आज भी आमीरों के प्रति इज़्ज़त और गरीबों के प्रति हेय दृष्टि से देखा जा रहा है ! पहले तोह जातिवाद था पर उसका जगह गरीबी अमीरी के भेदभाव ने ले लिया है ! 
लोग कहते हैं हमारा देश तरक्की कर रहा है, हमारी इकॉनमी सबसे तीब्र गति से बढ़ रही है पर मैं मानता हूँ यह अभी कागज़ तक ही सीमित है ! जबतक उस गरीब किसान, गरीब भिखारी,गरीब मजदूर आदि के जीवन को नहीं छूती मैं मान ही नहीं सकता l और आजाद तोह आज  भी हम नहीं हुए हैं ! आज हम इन पैसा लोलुप नेताओं के चंगुल से ग्रसित हैं, जिंनमे स्वार्थ भाव जड़ बनाये बैठ जाती है! अब बारी है इन घूसखोर लालची स्वार्थी नेताओं के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ने की l पर क्या बस आंदोलन छेड़ने से हो जायेगा? क्या फिर वही परिस्थिति न उत्पन्न हो जाएगी ? आखिर इस समस्या का निपटारा कैसे हो सकता है ? यूँ तोह अगर चाह हो तोह सभी समस्यायों का निपटारा संभव है ये गरीबी, भुखमरी सब दूर हो सकती है बस चाह होनी चाहिए! घूसखोर  स्वार्थी दबंग प्रबृति के नेताओं का बहिष्कार करना होगा और अच्छे लोगों को प्रतिनिधि के रूप में चुनना होगा ! देशभक्त लोगों को अब देश की आन बचाने के लिए राजनीति में  बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेनी होगी और किसी भी प्रकार के निर्णय लेने से पूर्व गांधीजी के दिए गए इस मूल वचन को जरूर याद रखना चाहिए l  
"जो सबसे गरीब और कमज़ोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शकल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा । क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा ? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा ? यानी क्या उससे उन करोड़ो लोगों को स्वराज मिल सकेगा जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है ?
तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम् समाप्त हो रहा है ।" – महात्मा गांधी ||