Friday, June 12, 2015

किंकर्तव्यविमूढ़

कुछ दुविधा तोह है! धुंधलापन बढ़ सा गया है राह दिखाई नहीं दे रहे मंजिल की सुगबुगाहट नहीं ! और मन भी अशांत सा है | ये कैसी परिस्थिति है ?क्यों उत्पन हो रही? मन इतना व्याकुल क्यों हो चला है ? क्यों यह स्थिर नहीं रह पा रहा?
मध्यमवर्गीय मानुष की दर्जनों पीड़ा होती है शायद मैं उन्ही में से किसी एक से होकर गुजर रहा हूँ 'कुछ करने की तोह आश है विश्वास भी है पर बहुत सी बेड़ियां बंधी है पैरों में और शायद इनसे मुक्ति की आश में ही इतनी उलझने इतने विचारों का मन में उमड़ना घुमड़ना हो रहा है और मब व्यथित है| बहन की शादी हो जाती तब निश्चिन्त हो जाता, भाई IIT Exam निकाल लेता तब निश्चितता बढ़ जाती और पापा को अच्छी नौकरी मिल जाती ताकि बहन के दहेज़ के लिए उधार का निपटारा भी होते रहता ! हम बिहारियों की इन जात पात से अब तक जुड़े रहना और दहेज़ की लोलुपता कुछ कैंसर की तरह आहत करता है |कई परिवारों को तोह इस विडम्बना के चलते  मैंने आर्थिक रूप से खोखला होते देखा है | हमारे परिवार की स्थिति अच्छी नहीं है वो तोह दादाजी के मास्टर होने के चलते सब पढ़ लिख गए ये सौभाग्य रहा पर नौकरी तोह उस समय किसी को भी नहीं मिली, और मिलती भी कैसे बिहार खस्ता हाल की मार से उस समय भी नहीं बच पाया था । पूर्वज् जमीन छोड़ तोह गए थे पर जनसँख्या की तीब्रता ऐसी बढ़ी की वो जमींन हमारे युग में बस एक नाममात्र ही रह गया | अब क्या सब भटक रहे हैं कभी डेल्ही तोह कभी कलकता रोजमर्रा की जरूरतों को पूरी करने और घर चलाने को ! मैं उस परिवार का पहला इंजीनियर बना प्रतिकूल परिस्थिति में प्राइवेट सीट ही मिल पायी Govt. सीट IIT के लिए कैसी मेहनत लगती है कोई समझाने को ना था नादानी में और नादान बन गया था इसी का खामियाज़ा प्राइवेट संसथान से इंजीनियरिंग करके भरना पड़ा | इंजीनियरिंग के अंतिम साल सौभाग्यवश दो दो कैंपस सिलेक्शन हुआ और हमने कोर सेक्टर को महत्व दिया और ज्वाइन भी कर लिया पर कमबख्त यहाँ भी परेशानियों ने पीछा ना छोड़ा ऐसी कंपनी हाथ लगी जो समय पर अपने एम्प्लोयी को सैलरी भी नहीं देती शुरुआती दौर में ये देरी दो महीनों की थी जो अब छः मॉस हो गयी है | प्रोजेक्ट तोह दो दो ख़त्म कर दिया पर ऐसी अवस्था से काम करने का मन नहीं करता मन भटकने लगता है | इसी भटकते मन में बचपन का सपना पुनः जागृत हुआ! कलेक्टर बनने का! पर इसमें सोशल मीडिया का योगदान भी काफी रहा कुछ ऐसे लोगों से जुड़ा जिनकी मंज़िल भी वही है और कुछ ऐसे लोगों के भी संस्पर्श में आया जो अपनी प्रतिभा का प्रमाण देकर कलेक्टर भी बन गए! अब ये जोश उफान पर है पढाई में फिरसे लीन होने का मन कर रहा है विद्या के रंगों में सराबोर होने का मन कर रहा है पर ऐसी परिस्थिति में ये दिन भर ऑफिस में काम फिर पढाई थोड़ी असहज सी लग रही ऐसा चलता रहा तोह देर हो जायेगी और कहीं मन जो गर्म लोहा बना है कहीं ठंढा न पड़ जाये | किंकर्तव्यविमूढ़ता यह है की एक रास्ता मुझे सब छोड़कर पढ़ने को कहती है पर एक रास्ता मेरा ध्यान घर की ओर आकृष्ट करती है जहाँ जवान बहन की उम्र शादी को हो चले हैं और भाई भी हॉस्टल में रहकर IIT की तयारी कर रहा है अतः हमने नौकरी छोड़ दी तोह दोनों को एकेले पापा से संभालना बहुत कठिन हो जायेगा | सुना है डेल्ही आईएस का सपना लिए पहुंचे कइयों के सपने साकार करने में समर्थ रही है इसी आकर्षण हेतु हमारा भी मन करता है जाकर वहीँ डुबकी लगाएं शायद परिस्थिति अनुकूल हो जाए हमें भी सफलता हाथ लगे! पर अभी तोह स्थिति नाज़ुक है और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ बना बैठा हूँ |

Thursday, June 4, 2015

बिहार चुनाव

इस बार गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है पर बिहार के गलियारों में एक दूसरी ही गर्माहट पाँव पसार रही है खिंचा कसी, मान मनौवल, ताना तानी, तू तू मैं मैं आदि आने वाले दिनों में ये अपने चरम सीमा तक चली जायेगी | बात है चुनाव को अब चन्द महीने रह गए और कुर्सी के रंगीन खेल के लिए बिहार जगविख्यात है अतः भिन्न भिन्न रंगों का समागम शुरू हो गया है और भी बहुत से रंगों की उम्मीद लगायी जा सकती है | रंग तोह कई उड़ते हैं पर जो रंग असरदार और फलदायक होता है वो है साम्प्रदायिकता और जातिवाद का इन्ही की बदौलत नेता पिचकारी भरते हैं जनता को बुरी तरह सराभोर करते हैं और विजय का छाप अपने नाम कर जाते हैं | यूँ तोह जमाना बदल रहा है लोगों की सोच बदल रही है फिर भी बिहार के लोगों का इन सबसे ऊपर उठ पाना नामुमकिन सा लगता है | एक तोह नेता अपने फायदे के लिए ऐसा होने नहीं देना चाहते और दूजी जनता सही शिक्षा के अभाव में इन सवमें अपने अहम् को देख इनसे जुड़े रहना चाहती है |
कुछ तो भारतीय इतिहास से सिखने की जरुरत है जहाँ बब्राह्मणों और छतरियों ने अपनी प्रभुता बचाये रखने के लिए और अपने बर्चस्व की रक्षा के लिए वैश्य और शूद्रों को अपने से निचे रखा और एक दिवार कायम किया जो आजतक चला आ रहा है | विभाजन का रूप पहले काम के अनुसार था अर्थात पूजा पाठ और शिक्षा से वाले ब्राह्मण, राज्य पर शाशन करने वाले तथा युद्ध करने वाले छत्रिय , व्यापार करने वाले वैश्य और मजदूर वर्ग को शुद्र के रूप में विभाजित किया गया था जिसे क्रमशः वंशगत आकार दे दिया गया |
एक और जहाँ मानव ने आज विज्ञानं पर विजय पायी है आये दिन नित्य नवीन अविष्कार हो रहे हैं वहीँ दूसरी और ये सामाजिक कुरुतियां और भेदभाव समाज के सशक्तिकरण और देश के विकाश का बाधक सिद्ध हो रही है | शायद यही कारन है की बिहार अभी तक पिछड़ा हुआ है और जबतक ये भेदभाव दूर नहीं होते इस जमीन पर बिकाश की परिकल्पना करना मूर्खता ही होगी|